मेरी मां शराब बेचती थीं, पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे, उन्हीं से किताबें खरीदकर मैं पढ़ता रहा और बन गया कलेक्टर
‘मैं गर्भ में था, तभी पिता गुजर गए। मुझे पिता की फोटो देखने का भी सौभाग्य नहीं मिला। कारण- पैसों की तंगी। हाल यह था कि एक वक्त का खाना भी बमुश्किल जुट पाता था।
मैं तब 2-3 साल था। भूख लगने पर रोता तो शराब पीने बैठे लोगों के रंग में भंग पड़ता। कुछ लोग तो चुप कराने के लिए मेरे मुंह में शराब की एक-दो बूंद डाल देते। दूध की जगह दादी भी एक-दो चम्मच शराब पिला देती और मैं भूखा होते हुए भी चुपचाप सो जाता। कुछ दिनों में आदत पड़ गई। सर्दी-खांसी हो तो दवा की जगह दारू मिलती। जब मैं चौथी कक्षा में था, घर के बाहर चबूतरे पर बैठकर पढ़ने बैठ जाता था। लेकिन, पीने आने वाले लोग कोई न कोई काम बताते रहते। पीने वाले लोग स्नैक्स के बदले पैसे देते थे। उसी से किताबें खरीदीं। 10वीं 95% अंकों के साथ पास की। 12वीं में 90% लाया। 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में बैठा। ओपन मेरिट के तहत मुंबई के सेठ जीएस मेडिकल कॉलेज में दाखिला मिला। 2011 में कॉलेज का बेस्ट स्टूडेंट बना। उसी साल यूपीएससी का फॉर्म भरा। कलेक्टर बना। लेकिन, मेरी मां को पहले कुछ पता नहीं चला। जब गांव के लोग, अफसर, नेता बधाई देने आने लगे तब उन्हें पता चला कि राजू (दुलार से) कलेक्टर की परीक्षा में पास हो गया है। वह सिर्फ रोती रहीं।