एक दशक की लंबी प्रतीक्षा के बाद जीएसटी का सपना साकार


नि:संदेह जीएसटी के रूप में एक देश-एक कर के विचार को धरातल पर उतारना आसान नहीं था, लेकिन अच्छा होता कि इसमें इतना अधिक समय नहीं खपता। जीएसटी को अंतिम रूप देने में हुई देरी से पक्ष-विपक्ष के सभी दलों को जरूरी सबक सीखने चाहिए ताकि भविष्य में अन्य कोई विधेयक विरोध के लिए विरोध की राजनीति का शिकार न हो। जीएसटी पर सहमति बनाने के मामले में यह किसी से छिपा नहीं कि विपक्षी दल के रूप में भाजपा और कांग्रेस, दोनों का रवैया असहयोग भरा रहा।

जीएसटी उद्योग-व्यापार जगत के साथ-साथ आम जनता के लिए भी उपयोगी बनना चाहिए। जीएसटी काउंसिल के रूप में देश एक नई तरह की संघीय व्यवस्था से दो-चार होने जा रहा है। अच्छा यह होगा कि ऐसी ही संघीय व्यवस्था का निर्माण आतंरिक सुरक्षा एवं कुछ अन्य मामलों में भी किया जाए।