गृह मंत्रालय की संसदीय समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में दिल्ली के यातायात जाम की स्थिति को अलार्मिग बताया जाना वाकई चिंताजनक है। पूर्व गृह एवं वित्त मंत्री की अध्यक्षता वाली इस समिति की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दिल्ली पुलिस और ट्रैफिक पुलिस इस स्थिति को संभाल पाने में नाकामयाब साबित हो रही है। इसके लिए विस्तृत और पुख्ता एक्शन प्लान तैयार किया जाना चाहिए।
गौर करने लायक तथ्य यह भी है कि 2016 में पंजीकृत वाहनों की संख्या 97 लाख तक पहुंच चुकी है, जबकि सड़कों की लंबाई केवल 33,198 किलोमीटर है। वाहनों में भी 49 फीसद कार, 30 फीसद दोपहिया वाहन और 13 फीसद ऑटो रिक्शा हैं।
मतलब, सार्वजनिक परिवहन में यात्र करने वाले यात्रियों की संख्या 10 फीसद भी नहीं रह गई है।
हैरानी की बात यह भी है कि दिल्ली मास्टर प्लान-2021 में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था का उपयोग करने वालों की संख्या 80 फीसद तक किए जाने की योजना है। ऐसे में इन सभी तथ्यों के मद्देनजर यह सवाल उठना जायज है कि स्थिति कैसे सुधरेगी और किस तरह दिल्ली की तस्वीर बदलेगी।
दिल्ली में अतिक्रमण और अवैध पार्किंग ने सड़कों को संकरा कर दिया है। सार्वजनिक परिवहन के नाम पर बमुश्किल 4000 बसें सडकों पर दौड़ रही हैं, जबकि होनी चाहिए 11000 के आसपास। मेट्रो भी ओवरलोड होने लगी और बसें भी पर्याप्त नहीं हैं। वाहनों की बढ़ती संख्या ही यातायात जाम की समस्या को विकराल कर रही है। यदि यही स्थिति रही तो भविष्य में हर सड़क के समानांतर एक एलिवेटेड रोड बनानी पड़ जाएगी। यातायात जाम को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। इसके दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं। भविष्य में स्थिति और विकट होने वाली है। इसलिए अब सरकारी विभागों के साथ आम आदमी को भी सचेत हो जाना चाहिए। सभी के प्रयासों से ही हालात में सुधार हो पाएगा।